(4) क्षेत्रीय नृत्य :-
(I) शेखावाटी क्षेत्र के नृत्य :-
गीदड़ नृत्य :-
(III) जालौर के नृत्य :-
(I) ढोल नृत्य :- यह नृत्य जालौर क्षेत्र में संचालिया संप्रदाय में विवाह के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है।
Note :- यह नृत्य थाकना शैली में किया जाता है।
राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास इस नृत्य को प्रकाश में लाए।
(II) लुंबर नृत्य :- होली के अवसर पर जालौर क्षेत्र में सामूहिक रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है।
(III) डांग नृत्य :-
( IV) बिंदोरी नृत्य :- यह झालावाड़ क्षेत्र में पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
(V) नाहर नृत्य :-
(VI) अग्नि नृत्य :-
(VII) भैरव नृत्य :-
(VIII) पैंजण नृत्य :-
➽कन्नडा नृत्य चौहरण बाड़मेर में तथा डांडिया नृत्य बाड़मेर (मारवाड़ क्षैत्र ) में किया जाता है।
(I) शेखावाटी क्षेत्र के नृत्य :-
- कच्ची घोड़ी नृत्य
- गीदड़ नृत्य
- चंग नृत्य
- ढफ नृत्य
- कबूतरी नृत्य
- जिंदाद नृत्य
गीदड़ नृत्य :-
- यह पुरुष प्रधान नृत्य है।
- यह डांडा रोपण (माल पूर्णिमा) से होलिका दहन तक किया जाता है।
- इसमें पुरुषों द्वारा महिलाओं की भूमिका निभाई जाती है जिसे महरि या गणगौर कहते हैं ।
- बम नृत्य
- चरकूला नृत्य
- दुर्गा नृत्य
(III) जालौर के नृत्य :-
(I) ढोल नृत्य :- यह नृत्य जालौर क्षेत्र में संचालिया संप्रदाय में विवाह के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है।
Note :- यह नृत्य थाकना शैली में किया जाता है।
राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास इस नृत्य को प्रकाश में लाए।
(II) लुंबर नृत्य :- होली के अवसर पर जालौर क्षेत्र में सामूहिक रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है।
(III) डांग नृत्य :-
- यह नृत्य राजसमंद जिले के नाथद्वारा क्षैत्र में होली के अवसर पर किया जाता है।
- इसे स्त्री पुरुष साथ -साथ करते हैं ।
- इसमें पुरुषों द्वारा भगवान श्री कृष्ण की एवं स्त्रियों द्वारा राधा की नकल की जाती है तथा वैसे ही वस्त्र धारण किए जाते हैं।
( IV) बिंदोरी नृत्य :- यह झालावाड़ क्षेत्र में पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
(V) नाहर नृत्य :-
- यह भीलवाड़ा के मांडल कस्बे में आयोजित किया जाता है ।
- इस नृत्य में पुरुष अपने शरीर पर रुई लपेटकर शेर का रूप धारण करते हैं।
(VI) अग्नि नृत्य :-
- बीकानेर के कतरियासर गाँव में जसनाथी सम्प्रदाय द्वारा रात्रि जागरण के समय धड़कते अंगारों के ढेर (घूणा ) पर फतेह -फ़तेह कहते हुए किया जाने वाला नृत्य है।
- इस नृत्य में केवल पुरुष ही भाग लेते हैं।
- अग्नि के स्थान को घूणा कहा जाता है।
- इसमें नगाड़े वाद्य यंत्र की धुन पर अंगारों से मदिरा फोड़ना, हल जोतना, अंगारों को दांतो से पकड़ना आदि करतव किये जाते है।
(VII) भैरव नृत्य :-
- यह नृत्य ब्यावर अजमेर में प्रसिद्ध है।
- यह होली के अवसर पर बादशाह (टोडरमल) की सवारी के आगे बीरबल द्वारा किया जाता है।
- बादशाह का प्रतीक टोडरमल है।
- इस नृत्य में बीरबल, ब्यावर के व्यास परिवार का व्यक्ति बनता है।
- इस नृत्य को मयूर नृत्य, बीरबल नृत्य भी कहते है।
(VIII) पैंजण नृत्य :-
- यह नृत्य बांगड में दीपावली के अवसर पर किया जाता है।
- यह डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा का प्रसिद्ध है।
➽कन्नडा नृत्य चौहरण बाड़मेर में तथा डांडिया नृत्य बाड़मेर (मारवाड़ क्षैत्र ) में किया जाता है।
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