(3.) जातीय नृत्य :-
जातीय नृत्य कई प्रकार के है :⇨
(A) कंजर/कंजरी जाति के नृत्य :- कंजर जाति के मुख्यतः तीन नृत्य है :- लाठी , धाकड़ , चकरी । (ट्रिक-LDC )(I) लाठी ➞ ये केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है।
(II) धाकड़ ➞ ये केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है।
(III) चकरी ➞ इसे फूंदी नृत्य भी कहते है। ये केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस नृत्य को कंजर जाति की अविवाहित लड़कियों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में अविवाहित लड़कियां द्वारा गोलाकार रूप में नृत्य करते हुए अपने प्रेमी से श्रंगार की सामग्री लाने का अनुरोध करती हैं।
चकरी नृत्य मुख्यतः बूंदी जिले में सातूडी तीज के दिन (श्रावण शुक्ल तृतीया) के अवसर पर किया जाता है।
प्रमुख कलाकार:- शांति, फुलवा, फिलमां।
(B) नट जाति के नृत्य :-
कठपुतली नृत्य :➞ यह नृत्य नट जाति का नृत्य है।
1955 में देवीलाल सामर ने भारतीय लोक कला मंडल की स्थापना की जो कठपुतली नृत्य को संरक्षण प्रदान करती है।
कठपुतली बनाने का कार्य उदयपुर का प्रसिद्ध है।
कठपुतली नृत्य :➞ यह नृत्य नट जाति का नृत्य है।
1955 में देवीलाल सामर ने भारतीय लोक कला मंडल की स्थापना की जो कठपुतली नृत्य को संरक्षण प्रदान करती है।
कठपुतली बनाने का कार्य उदयपुर का प्रसिद्ध है।
(C) भील जाति के नृत्य:- भील जाति के कई प्रकार के नृत्य है ➞
- गवरी /राई नृत्य
- गैर नृत्य
- युद्ध नृत्य
- रमणी नृत्य
- द्विचकरी नृत्य
- घूमर/घूमरा नृत्य,
- हाथी मना नृत्य
- सांद नृत्य
- हुंदरा नृत्य
- नेजा नृत्य
पुरुषों द्वारा ⬇
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गैर नृत्य:➞
- इसे मेवाड़ में भील पुरुषों द्वारा किया जाता है।
- पुरुषों को गौरिये कहा जाता है पुरुषों द्वारा धारण किया जाने वाला वस्त्र ओंगी कहलाता है।
- इस नृत्य में प्रयुक्त लकड़ी की छड़ को खंडाका जाता है।
- इसे मेवाड़ के भील पुरुष करते हैं।
- यह नृत्य रक्षाबंधन से 40 दिन तक चलता है ।
- भाद्रपद शुक्ल एकदम से आश्विन शुक्ल दशमी तक किया जाता है अथवा सावन भादो में आयोजित किया जाता है।
- यह शिव वह भस्मासुर की कथा पर आधारित धार्मिक नृत्य है इसे राजस्थान के लोक नाट्यों की प्राचीन लोकनाट्य माना जाता है ।
- इसे राजस्थान के लोकनाट्यों की मैरूनाट्य भी कहा जाता है ।
- इसमें शिव को पुरिया और पार्वती को गवरी/राई कहा जाता है।
(D) गरासिया जनजाति के नृत्य :- गरासिया जनजाति के कई नृत्य है -
ट्रिक:- गौरा मां मौज में कूद लू वा
गौ
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गौरा नृत्य
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रा
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रायण नृत्य
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मां
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मांदल नृत्य
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मो
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मोरिया नृत्य
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ज
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जवारा नृत्य
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कु
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कुद नृत्य
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लू
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लूर नृत्य
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वा
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वालर
नृत्य
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पुरुषों
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महिलाओं
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पुरुषों +
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लूर
नृत्य
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मोरिया
नृत्य
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गौरा नृत्य
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मादल
नृत्य
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रायण
नृत्य
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जवारा
नृत्य
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लूर
नृत्य
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वालर
नृत्य
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वालर नृत्य:-
- वालर नृत्य सिरोही क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
- यह विवाह, मांगलिक अवसरों (गणगौर होली ) पर किया जाता है।
- यह बिना वाद्ययंत्र के स्त्री पुरुषों द्वारा धीमी गति से किया जाने वाला नृत्य है।
- इस नृत्य का प्रारम्भ पुरुषों द्वारा हाथों में तलवार, छाता लेकर किया जाता है।
- वालर नृत्य के प्रमुख कलाकार उदयपुर के जवाहरमल हैं।
- जवाहरमल का 30 अप्रैल 1991 को ₹5 का डांक टिकट जारी किया गया।
लूर नृत्य :-
- यह महिला प्रधान नृत्य है।
- इसको लूर गोत्र की महिलाएं करती हैं।
(E ) सहरिया जाति की नृत्य :-
ट्रिक:- इसी को झेल
ट्रिक:- इसी को झेल
पुरुषों
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महिलाओं
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पुरुषों +
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शिकारी नृत्य :- यह नृत्य बारां जिले के सहरिया पुरुषों द्वारा शिकार का अभिनय करते हुए किया जाता है।
(F) मेव जाति के नृत्य :-
- रणबाजा नृत्य
- रतवई नृत्य
(G) बंजारा जाति के नृत्य :-
- मछली नृत्य
- मावरी नृत्य
(H) माली जाति का नृत्य :- चरवा नृत्य।
चरवा नृत्य :- यह नृत्य त्यौहार एवं जन्मोत्सव के अवसर पर किया जाता है
चरवा नृत्य :- यह नृत्य त्यौहार एवं जन्मोत्सव के अवसर पर किया जाता है
(I) कथौड़ी जनजाति के नृत्य :-
प्रकार ➞
प्रकार ➞
- होली नृत्य
- मावलिया नृत्य / मावा नृत्य
(I) होली नृत्य :➞
- यह नृत्य होली पर किया जाता है।
- यह महिला प्रधान नृत्य है।
- इसमें पिरामिड बनाते हैं
- इसमें महिलाएं फड़का साड़ी पहनती हैं।
(II) मावलिया नृत्य :➞
- यह पुरुषों का नृत्य है।
- यह नवरात्रि में किया जाता है।
(J) गुर्जर जाति के नृत्य :-
- चरी नृत्य
- झूमरियो नृत्य
(I) चरी नृत्य :➞
- इस नृत्य का प्रसिद्ध क्षेत्र किशनगढ़, अजमेर है।
- यह महिला प्रधान नृत्य हैं ।
- इसकी प्रसिद्ध नृत्यांगना फलूका बाई है।
(II) झुमरिया नृत्य :➞
(K) मीणा जाति के नृत्य :-
(L) भील मीणा जाति का नृत्य :-
नेजा नृत्य :➞
- यह पुरुष प्रधान नृत्य है।
- यह नवरात्रों में किया जाता है।
(K) मीणा जाति के नृत्य :-
- नेजा नृत्य
- रसिया नृत्य
(L) भील मीणा जाति का नृत्य :-
नेजा नृत्य :➞
- यह खेल नृत्य भी कहलाता है
- यह पुरुषों और स्त्रियों द्वारा होली के अवसर पर किया जाता है
- यह आदिवासियों द्वारा विशेषकर भील तथा मीणा जाति के लोगों द्वारा होली के समय एक खुले मैदान में डंडा रोपकर (लगाकर) यह यह नृत्य किया जाता हैं, इसमें डंडे/बांस के सिरे पर नारियल बांधा जाता है तथा महिलाएं हाथ में कौड़े लेकर इसको चारों तरफ से घेर कर खड़ी हो जाती हैं तथा पुरुष बारी-बारी से घेरे में जाकर नारियल उतारने का प्रयास करते हैं एवं महिलाएं उन्हें कौड़े से पीटती हैं।
- यह नृत्य वर वधू के चुनाव के लिए भी किया जाता है
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