राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां
जयपुर संभाग :-
1.) झुंझनू :- राणी सती माता, मनसा माता
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2.) सीकर :- जीण माता, सकराय माता
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3.) अलवर :- नारायणी माता-राजगण ,धोलागण माता ,
जिलाणी माता -बहरोड
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4.) दौसा :- हर्षद माता, पपलाज माता
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5.) जयपुर :-
जमवाय माता - जमवायरामगढ
शिला माता - आमेर
शीतला माता - चाकसू जयपुर
छींक माता - जय भवानीपुरा
नकटी माता - गोपालजी का
रास्ता
ज्वाला माता - जोबनेर
कलकर्णी माता - लूगियावास
शाकम्भरी माता - सांभर जयपुर
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जमवाय माता :➞ यह कच्छवाह राजवंश की कुल देवी है।
मंदिर :- जमवायरामगढ जयपुर - इस मंदिर को ढूंढाड का पुष्कर भी कहते है।
जमवाय माता को अन्नपूर्णा माता भी कहते है।
शिला माता :➞ शिला माता के मंदिर का निर्माण मानसिंह (प्रथम) ने करवाया।
- यह अष्ट भुजी प्रतिमा है,काले पत्थर से निर्मित है एवं पाषण शैली में निर्मित है।
- शिला माता के मंदिर का पुनर्निर्माण मानसिंह (द्वितीय) ने करवाया।
- इस माता के मंदिर में जैम एवं मदिरा का प्रसाद दिया जाता है।
शाकम्भरी माता :➞ यह सांभर जयपुर में स्थित है।
- यह चौहान वंश की कुल देवी है।
- वासुदेव चौहान इसके संस्थापक है जिन्हे आदिपुरुष, मूलपुरुष भी कहा जाता है
- इसका एक मंदिर लाटसपुर (up) में भी है।
- शाकम्भरी माता के मंदिर के पास देवयानी झील मेला (वैशाख पूर्णमा ) को लगता है जिसे तीर्थों की नानी कहते है।
- तीर्थों का मामा पुष्कर -अजमेर को कहते है।
- तीर्थों का भांजा मचकुण्ड -धौलपुर को कहते है।
जीण माता :➞
पिता - धंधराय चौहान
मूलनाम - जयंती बाई
भाई - हर्ष
- जीण माता का मंदिर रेवासा सीकर में है जो की पूर्वक मुखी मंदिर है।
- जीण माता के मंदिर का निर्माण 1064 ई. में मोहिल के राजा हट्टड के द्वारा करवाया गया जो की पृथ्वीराज (प्रथम) का सामंत था।
- इस मंदिर में केंद्र सर्कार के द्वारा घी भेजा जाता है
- यह अजमेर के चौहानों की आराध्य देवी है।
- यह मीणाओं की भी आराध्य देवी है।
- इसे मधुमक्खियों की देवी भी कहा जाता है।
- इसके मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा तोड़ने का प्रयाश किया गया था।
- इसे ढाई प्याले शराब वाली देवी भी कहते है तथा इसकी प्रतिमा अष्टभुजी है।
Note :- राजस्थान में सबसे लम्बा लोक गीत जीण माता का है जो की भाई बहन के प्रेम पर आधारित है जिसे "चिरजा " कहा जाता है।
राणी सती माता :➞
राणीसती माता का मुलनाम - नारायणी बाई
पति - तनधन दास
उपनाम - दादी सती / दादी जी
मेला - भाद्र अमावस्या (सतिया अमावस्या) को लगता है।
- राजस्थान में अंतिम सती 4 सितम्बर 1987 को दिवराला - सीकर में "रूपकंवर" हुई थी।
- सतीप्रथा अधिनियम 1988 में पारित किया गया जिसके तहत सतीप्रथा पर पाबन्दी लगा दी गयी।
Note :-
- राजस्थान में सतीप्रथा पर रोक लगाने वाली प्रथम रियासत कोटा है।
- राजस्थान में सतीप्रथा को गैर कानूनी घोसित करने वाली प्रथम रियासत बूंदी है।
नारायणी माता :➞
मुलनाम - करमाबती बाई
पति - करणेश जी
पिता - विजयराय नाई
माता - रामहेती
- ये नाई / सैन समाज की कुल देवी है।
- मंदिर- बरखा की डूंगरी राजगढ़ अलवर में स्थित है।
- पुजारी मीणा जाति का होता है।
Note :- पुजारी के लिए मीणा एवं नाई जाति में विवाद चल रहा है।
हर्षद माता :➞
- इसका आभानेरी दोसा में मंदिर स्थित है
- यह प्रतिहार कालीन मंदिर है जिसका निर्माण महामारू शैली में किया गया है।
- हर्षद माता के मंदिर का निर्माण 8 वी शताब्दी में निकुम्ब शासक चंद्र द्वारा करवाया गया यहाँ चंद्र द्वारा निर्मित "चाँद बाबड़ी" भी स्थित है।
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